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Thursday 10 September, 2009

राम की लीलाएं



राम एक आदर्श पुत्र, पति और प्रजापालक थे। वे सभी इंद्रियों को जीतने वाले, तेजस्वी, बुद्धिमान, पराक्रमी, विद्वान, नीति-निपुण और मर्यादा पुरुषोत्तम थे। सच तो यह है कि राम के जीवन की लीलाएं हमारे लिए खास महत्व इसलिए भी रखती हैं, क्योंकि उनसे हमारी संस्कृति और लोक-व्यवहार जुडा हुआ है।
यदि हम उनके कर्मो और लीलाओं से प्रेरणा लें, तो हमारा अशांत और अस्थिर जीवन सुखद और सरल हो सकता है।
शबरी के जूठे बेर
एक बार राम की परम भक्त शबरी ने उन्हें जूठे बेर खाने को दिया। राम ने तुरंत उनके बेर को खा लिया। राम ने शबरी के बेरों को स्वीकार कर हमारे सामने प्रेम और समानता का आदर्श प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, सभी इंसान बराबर हैं, कोई बडा या छोटा नहीं है। एक दूसरे घटनाक्रम में राम ने लक्ष्मण को मृत्यु शैय्यापर पडे रावण से उपदेश लेने की भी सलाह दी।
साथ ही, उन्होंने लक्ष्मण को रावण के चरणों के पास बैठ कर ज्ञान प्राप्त करने को कहा, क्योंकि ज्ञान किसी भी व्यक्ति से और किसी भी स्थान पर लिया जा सकता है। ज्ञान देने वाला हमेशा श्रेष्ठ होता है, इसलिए लेने वाले के मन में समर्पण का भाव होना चाहिए। कैकेयीका वचन
राम के पिता दशरथ ने माता कैकेईको वचन दिया कि राम को चौदह वर्षो का वनवास मिले। उनके दिए गए वचन का मान बना रहे, इसके लिए राम ने न केवल हंसते-हंसते चौदह वर्षो का वनवास स्वीकार कर लिया, बल्कि छोटे भाई भरत को राज सिंहासन देने का निर्णय भी ले लिया।
उन्होंने अपनी मां की आज्ञा का पालन, पिता के वचन का मान, भाइयों के प्रति अपार स्नेह का भाव और सुख-ऐश्वर्य को त्याग कर हमारे सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। यदि हम उनके इन सभी भावों को अपने जीवन में उतार लें, तो न केवल हम स्वयं सुखी हो सकेंगे, बल्कि दूसरों को भी सुख दे सकेंगे। सीता के प्रति आदर
यदि राम चाहते, तो सीता हरण के बाद दूसरा विवाह कर अपने जीवन को सरल व सुखद बना सकते थे। दरअसल, उस समय अनेक शादियों का प्रचलन भी था। लेकिन उन्होंने उसी पथ का अनुसरण किया, जो आम लोगों के लिए अनुकरणीय बने।
यही नहीं, वनवास की अवधि के बाद जब उनका राज्याभिषेक किया गया, तो उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को बराबर का दर्जा दिया। साथ ही, वे पत्नी के प्रति आजीवन प्रेम के संकल्प से भी कभी विमुख नहीं हुए और इसलिए भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। रावण से युद्ध
राम विष्णु के अवतार थे और उनके पास हर तरह की चमत्कारी शक्तियां मौजूद थीं। लेकिन इन शक्तियों का प्रयोग उन्होंने अपने लाभ के लिए कभी नहीं किया। यहां तक कि रावण के साथ युद्ध में भी वे साधारण मानव ही बने रहे। इस कार्य में उन्होंने सभी जीवों की सहायता भी ली।
हालांकि वे युद्ध नहीं चाहते थे, लेकिन रावण के अत्याचार से पृथ्वी को मुक्त कराने के लिए उन्हें युद्ध करना ही पडा। सुग्रीव की मित्रता
राम ने वानर राज सुग्रीव के साथ न केवल मित्रता की, बल्कि उनका हर कदम पर साथ दिया। उन्होंने न केवल एक अच्छे मित्र का उदाहरण दिया है, बल्कि हनुमान के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार निभाकर गुरु-शिष्य, भगवान-भक्त के रिश्ते को और भी मजबूत व समृद्ध किया है। वनवास के दौरान राम ने हमेशा कोल, किरात, भील आदि के साथ समता का व्यवहार किया। प्राणियों के प्रति प्रेम
सीता को तलाशने के लिए वानर एवं रीछ की सहायता इसलिए ली, ताकि इनको भी अपनी महत्ता का पता चले। राम की शरण में आए हुए हर प्राणी की रक्षा का उदाहरण भी अनुपम है। चाहे वह बाली के भाई सुग्रीव हों या नन्हीं जीव गिलहरी, सबकी उन्होंने रक्षा की।
युद्ध के दौरान रावण ने विभीषण पर अमोघ शक्ति का प्रहार किया। इस पर राम ने अपनी शरण में आए विभीषण की रक्षा करने के लिए खुद ही उस शक्ति को अपनी छाती पर झेल लिया। हम देखते हैं कि राम का व्यक्तित्व हम सबों के लिए आज भी प्रेरणादायक है। उनके गुणों को अपने जीवन में अपनाकर हम समाज का कल्याण कर सकते हैं। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रामनवमी उत्सव मनाया जाता है। इसी दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। इस वर्ष यह तिथि 3अप्रैल है।

.चित्रकूट में लिखा गया था अयोध्या कांड

गोस्वामी तुलसीदास बन श्री राम कथा का अमर गायक बन पूरे विश्व में आदर का पात्र बन जायेगा, यह राजापुर के निवासियों ने कभी सोचा भी न था। यह बात और थी कि यह विलक्षण योगी स्वामी नरहरिदास को राजापुर के ही समीप हरिपुर के पास एक पेड़ के नीचे मिल गया और वे उसे उठाकर अपने साथ ले गये। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम व उनकी महिमा से परिचित कराने के साथ ही उन्होंने राम बोला को संस्कार व काशी ले जाकर शिक्षा दी तब वह गोस्वामी तुलसीदास बन सके।
वैसे तो संत तुलसीदास चित्रकूट में अपने गुरु स्थान नरहरिदास आश्रम पर कई वर्षो तक रहे और यहां पर उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम व भ्राता लक्ष्मण के दो बार साक्षात् दर्शन भी किये। उन्होंने यहीं पर रहकर रामचरित मानस का पूरा अयोध्या कांड व विनय पत्रिका पूर्वाद्ध भी लिखा।
अभी तक ज्यादातर लोग सिर्फ यही जानते हैं कि तुलसीदास की हस्तलिखित रामचरित मानस की प्रति सिर्फ राजापुर में है पर इस दुर्लभ प्रति को चित्रकूट परिक्रमा मार्ग स्थित नरहरिदास आश्रम में देखा जा सकता है। यही स्थान गोस्वामी तुलसीदास जी का गुरु स्थान है, इसे महल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर पिछले चालीस वर्षो से मंदिर की व्यवस्था का काम देखने वाले स्वामी रघुवर दास बताते हैं कि स्वामी नरहरिदास ने अपने जीवन काल का अधिकांश समय चित्रकूट में ही व्यतीत किया। गोस्वामी जी चित्रकूट में ही पले व बडे़ हुए। वह हमेशा अपने गुरु स्थान पर आते रहे और यहां पर भी वे रामचरित मानस के साथ ही अन्य ग्रंथों की रचना में तल्लीन रहते थे।
उन्होंने रामचरित मानस की एक मूल हस्तलिखित प्रति दिखाते हुए कहा कि यह गोस्वामी जी के हाथ की लिखी गयी प्रति है। इसके लगभग पांच सौ पेज अभी भी सुरक्षित हैं जिसमें सभी कांडों के थोड़े-थोड़े पन्ने हैं। आर्थिक अभावों के चलते वे इसका संरक्षण कराने में अपने आपको असमर्थ बताते हैं। कहा कि न तो मंदिर में आमदनी का कोई स्रोत है और न ही उनके पास किसी तरह की मदद आती है।
संत तुलसीदास का लगाया गया पीपल का पेड़ भी यहीं पर है जो उचित संरक्षण के अभाव में गिरने के कगार पर है। चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बाबा तुलसी दास का लगाया पेड़ तो सबकी नजरों के सामने ही है पर उसके संरक्षण और संवर्धन का कोई प्रयास नही करता।