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Thursday 10 September, 2009

राम की लीलाएं



राम एक आदर्श पुत्र, पति और प्रजापालक थे। वे सभी इंद्रियों को जीतने वाले, तेजस्वी, बुद्धिमान, पराक्रमी, विद्वान, नीति-निपुण और मर्यादा पुरुषोत्तम थे। सच तो यह है कि राम के जीवन की लीलाएं हमारे लिए खास महत्व इसलिए भी रखती हैं, क्योंकि उनसे हमारी संस्कृति और लोक-व्यवहार जुडा हुआ है।
यदि हम उनके कर्मो और लीलाओं से प्रेरणा लें, तो हमारा अशांत और अस्थिर जीवन सुखद और सरल हो सकता है।
शबरी के जूठे बेर
एक बार राम की परम भक्त शबरी ने उन्हें जूठे बेर खाने को दिया। राम ने तुरंत उनके बेर को खा लिया। राम ने शबरी के बेरों को स्वीकार कर हमारे सामने प्रेम और समानता का आदर्श प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, सभी इंसान बराबर हैं, कोई बडा या छोटा नहीं है। एक दूसरे घटनाक्रम में राम ने लक्ष्मण को मृत्यु शैय्यापर पडे रावण से उपदेश लेने की भी सलाह दी।
साथ ही, उन्होंने लक्ष्मण को रावण के चरणों के पास बैठ कर ज्ञान प्राप्त करने को कहा, क्योंकि ज्ञान किसी भी व्यक्ति से और किसी भी स्थान पर लिया जा सकता है। ज्ञान देने वाला हमेशा श्रेष्ठ होता है, इसलिए लेने वाले के मन में समर्पण का भाव होना चाहिए। कैकेयीका वचन
राम के पिता दशरथ ने माता कैकेईको वचन दिया कि राम को चौदह वर्षो का वनवास मिले। उनके दिए गए वचन का मान बना रहे, इसके लिए राम ने न केवल हंसते-हंसते चौदह वर्षो का वनवास स्वीकार कर लिया, बल्कि छोटे भाई भरत को राज सिंहासन देने का निर्णय भी ले लिया।
उन्होंने अपनी मां की आज्ञा का पालन, पिता के वचन का मान, भाइयों के प्रति अपार स्नेह का भाव और सुख-ऐश्वर्य को त्याग कर हमारे सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। यदि हम उनके इन सभी भावों को अपने जीवन में उतार लें, तो न केवल हम स्वयं सुखी हो सकेंगे, बल्कि दूसरों को भी सुख दे सकेंगे। सीता के प्रति आदर
यदि राम चाहते, तो सीता हरण के बाद दूसरा विवाह कर अपने जीवन को सरल व सुखद बना सकते थे। दरअसल, उस समय अनेक शादियों का प्रचलन भी था। लेकिन उन्होंने उसी पथ का अनुसरण किया, जो आम लोगों के लिए अनुकरणीय बने।
यही नहीं, वनवास की अवधि के बाद जब उनका राज्याभिषेक किया गया, तो उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को बराबर का दर्जा दिया। साथ ही, वे पत्नी के प्रति आजीवन प्रेम के संकल्प से भी कभी विमुख नहीं हुए और इसलिए भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। रावण से युद्ध
राम विष्णु के अवतार थे और उनके पास हर तरह की चमत्कारी शक्तियां मौजूद थीं। लेकिन इन शक्तियों का प्रयोग उन्होंने अपने लाभ के लिए कभी नहीं किया। यहां तक कि रावण के साथ युद्ध में भी वे साधारण मानव ही बने रहे। इस कार्य में उन्होंने सभी जीवों की सहायता भी ली।
हालांकि वे युद्ध नहीं चाहते थे, लेकिन रावण के अत्याचार से पृथ्वी को मुक्त कराने के लिए उन्हें युद्ध करना ही पडा। सुग्रीव की मित्रता
राम ने वानर राज सुग्रीव के साथ न केवल मित्रता की, बल्कि उनका हर कदम पर साथ दिया। उन्होंने न केवल एक अच्छे मित्र का उदाहरण दिया है, बल्कि हनुमान के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार निभाकर गुरु-शिष्य, भगवान-भक्त के रिश्ते को और भी मजबूत व समृद्ध किया है। वनवास के दौरान राम ने हमेशा कोल, किरात, भील आदि के साथ समता का व्यवहार किया। प्राणियों के प्रति प्रेम
सीता को तलाशने के लिए वानर एवं रीछ की सहायता इसलिए ली, ताकि इनको भी अपनी महत्ता का पता चले। राम की शरण में आए हुए हर प्राणी की रक्षा का उदाहरण भी अनुपम है। चाहे वह बाली के भाई सुग्रीव हों या नन्हीं जीव गिलहरी, सबकी उन्होंने रक्षा की।
युद्ध के दौरान रावण ने विभीषण पर अमोघ शक्ति का प्रहार किया। इस पर राम ने अपनी शरण में आए विभीषण की रक्षा करने के लिए खुद ही उस शक्ति को अपनी छाती पर झेल लिया। हम देखते हैं कि राम का व्यक्तित्व हम सबों के लिए आज भी प्रेरणादायक है। उनके गुणों को अपने जीवन में अपनाकर हम समाज का कल्याण कर सकते हैं। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रामनवमी उत्सव मनाया जाता है। इसी दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। इस वर्ष यह तिथि 3अप्रैल है।

.चित्रकूट में लिखा गया था अयोध्या कांड

गोस्वामी तुलसीदास बन श्री राम कथा का अमर गायक बन पूरे विश्व में आदर का पात्र बन जायेगा, यह राजापुर के निवासियों ने कभी सोचा भी न था। यह बात और थी कि यह विलक्षण योगी स्वामी नरहरिदास को राजापुर के ही समीप हरिपुर के पास एक पेड़ के नीचे मिल गया और वे उसे उठाकर अपने साथ ले गये। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम व उनकी महिमा से परिचित कराने के साथ ही उन्होंने राम बोला को संस्कार व काशी ले जाकर शिक्षा दी तब वह गोस्वामी तुलसीदास बन सके।
वैसे तो संत तुलसीदास चित्रकूट में अपने गुरु स्थान नरहरिदास आश्रम पर कई वर्षो तक रहे और यहां पर उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम व भ्राता लक्ष्मण के दो बार साक्षात् दर्शन भी किये। उन्होंने यहीं पर रहकर रामचरित मानस का पूरा अयोध्या कांड व विनय पत्रिका पूर्वाद्ध भी लिखा।
अभी तक ज्यादातर लोग सिर्फ यही जानते हैं कि तुलसीदास की हस्तलिखित रामचरित मानस की प्रति सिर्फ राजापुर में है पर इस दुर्लभ प्रति को चित्रकूट परिक्रमा मार्ग स्थित नरहरिदास आश्रम में देखा जा सकता है। यही स्थान गोस्वामी तुलसीदास जी का गुरु स्थान है, इसे महल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर पिछले चालीस वर्षो से मंदिर की व्यवस्था का काम देखने वाले स्वामी रघुवर दास बताते हैं कि स्वामी नरहरिदास ने अपने जीवन काल का अधिकांश समय चित्रकूट में ही व्यतीत किया। गोस्वामी जी चित्रकूट में ही पले व बडे़ हुए। वह हमेशा अपने गुरु स्थान पर आते रहे और यहां पर भी वे रामचरित मानस के साथ ही अन्य ग्रंथों की रचना में तल्लीन रहते थे।
उन्होंने रामचरित मानस की एक मूल हस्तलिखित प्रति दिखाते हुए कहा कि यह गोस्वामी जी के हाथ की लिखी गयी प्रति है। इसके लगभग पांच सौ पेज अभी भी सुरक्षित हैं जिसमें सभी कांडों के थोड़े-थोड़े पन्ने हैं। आर्थिक अभावों के चलते वे इसका संरक्षण कराने में अपने आपको असमर्थ बताते हैं। कहा कि न तो मंदिर में आमदनी का कोई स्रोत है और न ही उनके पास किसी तरह की मदद आती है।
संत तुलसीदास का लगाया गया पीपल का पेड़ भी यहीं पर है जो उचित संरक्षण के अभाव में गिरने के कगार पर है। चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बाबा तुलसी दास का लगाया पेड़ तो सबकी नजरों के सामने ही है पर उसके संरक्षण और संवर्धन का कोई प्रयास नही करता।

Monday 3 August, 2009


वर्तमान समय में श्रीरामसेतुसर्वत्र चर्चा का विषय बना हुआ है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा 8अक्टूबर 2002को रामेश्वरमके समीप भारत और श्रीलंका के मध्य समुद्र में एक सेतु खोज लेने के बाद श्रीरामसेतुको काल्पनिक कहकर इसके अस्तित्व को नकार सकना संभव नहीं है। सीताहरण के बाद श्रीराम की वानरसेनाने लंका पर चढाई करने के लिए समुद्र पर सेतु बनाया था। राम-नाम के प्रताप से पत्थर पानी पर तैरने लगे।

रामसेतुका धार्मिक महत्व केवल इससे ही जाना जा सकता है कि स्कन्दपुराणके ब्रह्मखण्डमें इस सेतु के माहात्म्य का बडे विस्तार से वर्णन किया गया है। नैमिषारण्य में ऋषियों के द्वारा जीवों की मुक्ति का सुगम उपाय पूछने पर सूत जी बोले-

दृष्टमात्रेरामसेतौमुक्ति: संसार-सागरात्।

हरे हरौचभक्ति: स्यात्तथापुण्यसमृद्धिता।

रामसेतु के दर्शनमात्रसे संसार-सागर से मुक्ति मिल जाती है। भगवान विष्णु और शिव में भक्ति तथा पुण्य की वृद्धि होती है। इसलिए यह सेतु सबके लिए परम पूज्य है।

सेतु-महिमा का गुणगान करते हुए सूतजीशौनकआदि ऋषियों से कहते हैं- सेतु का दर्शन करने पर सब यज्ञों का, समस्त तीर्थो में स्नान का तथा सभी तपस्याओं का पुण्यफलप्राप्त होता है। सेतु-क्षेत्र में स्नान करने से सब प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा भक्त को मरणोपरांत वैकुण्ठ में प्रवेश मिलता है। सेतुतीर्थका स्नान अन्त:करण को शुद्ध करके मोक्ष का अधिकारी बना देता है। पापनाशक सेतुतीर्थमें निष्काम भाव से किया हुआ स्नान मोक्ष देता है। जो मनुष्य धन-सम्पत्ति के उद्देश्य से सेतुतीर्थमें स्नान करता है, वह सुख-समृद्धि पाता है। जो विद्वान चारों वेदों में पारंगत होने, समस्त शास्त्रों का ज्ञान और मंत्रों की सिद्धि के विचार से सर्वार्थसिद्धिदायकसेतुतीर्थमें स्नान करता है, उसे मनोवांछित सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। जो भी सेतुतीर्थमें स्नान करता है, वह इहलोक और परलोक में कभी दु:ख का भागी नहीं होता। जिस प्रकार कामधेनु, चिन्तामणि तथा कल्पवृक्ष समस्त अभीष्ट वस्तुओं को प्रदान करते हैं, उसी प्रकार सेतु-स्नान सब मनोरथ पूर्ण करता है।

रामसेतुके क्षेत्र में अनेक तीर्थ स्थित हैं अत:स्कन्दपुराणमें सेतुयात्राका क्रम एवं विधान भी वर्णित है। सेतुतीर्थमें पहुंचने पर सेतु की वन्दना करें-

रघुवीरपदन्यासपवित्रीकृतपांसवे।

दशकण्ठशिरश्छेदहेतवेसेतवेनम:॥

केतवेरामचन्द्रस्यमोक्षमार्गैकहेतवे।

सीतायामानसाम्भोजभानवेसेतवेनम:॥

श्रीरघुवीर के चरण रखने से जिसकी धूलि परम पवित्र हो गई है, जो दशानन रावण के सिर कटने का एकमात्र हेतु है, उस सेतु को नमस्कार है। जो मोक्षमार्गका प्रधान हेतु तथा श्रीरामचन्द्रजीके सुयश को फहरानेवालाध्वज है, सीताजीके हृदयकमलके खिलने के लिए सूर्यदेव के समान है, उस सेतु को मेरा नमस्कार है।

श्रीरामचरितमानसमें स्वयं भगवान श्रीराम का कथन है-

मम कृत सेतु जो दरसनुकरिही।

सो बिनुश्रम भवसागर तरिही॥

जो मेरे बनाए सेतु का दर्शन करेगा, वह कोई परिश्रम किए बिना ही संसाररूपीसमुद्र से तर जाएगा। श्रीमद्वाल्मीकीयरामायण के युद्धकाण्डके 22वेंअध्याय में लिखा है कि विश्वकर्मा के पुत्र वानरश्रेष्ठनल के नेतृत्व में वानरों ने मात्र पांच दिन में सौ योजन लंबा तथा दस योजन चौडा पुल समुद्र के ऊपर बनाकर रामजी की सेना के लंका में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। यह अपने आपमें एक विश्व-कीर्तिमान है। आज के इस आधुनिक युग में नवीनतम तकनीक के द्वारा भी इतने कम समय में यह कारनामा कर दिखाना संभव नहीं लगता।

महíष वाल्मीकि रामसेतुकी प्रशंसा में कहते हैं- अशोभतमहान् सेतु: सीमन्तइवसागरे।वह महान सेतु सागर में सीमन्त(मांग)के समान शोभित था। सनलेनकृत: सेतु: सागरेमकरालये।शुशुभेसुभग: श्रीमान् स्वातीपथइवाम्बरे॥मगरों से भरे समुद्र में नल के द्वारा निíमत वह सुंदर सेतु आकाश में छायापथके समान सुशोभित था। नासा के द्वारा अंतरिक्ष से खींचे गए चित्र से ये तथ्य अक्षरश:सत्य सिद्ध होते हैं।

स्कन्दपुराणके सेतु-माहात्म्य में धनुष्कोटितीर्थ का उल्लेख भी है-

दक्षिणाम्बुनिधौपुण्येरामसेतौविमुक्तिदे।

धनुष्कोटिरितिख्यातंतीर्थमस्तिविमुक्तिदम्॥

दक्षिण-समुद्र के तट पर जहां परम पवित्र रामसेतुहै, वहीं धनुष्कोटिनाम से विख्यात एक मुक्तिदायक तीर्थ है। इसके विषय में यह कथा है-भगवान श्रीराम जब लंका पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त भगवती सीता के साथ वापस लौटने लगे तब लंकापति विभीषण ने प्रार्थना की- प्रभो! आपके द्वारा बनवाया गया यह सेतु बना रहा तो भविष्य में इस मार्ग से भारत के बलाभिमानीराजा मेरी लंका पर आक्रमण करेंगे। लंका-नरेश विभीषण के अनुरोध पर श्रीरामचन्द्रजीने अपने धनुष की कोटि (नोक) से सेतु को एक स्थान से तोडकर उस भाग को समुद्र में डुबो दिया। इससे उस स्थान का नाम धनुष्कोटि हो गया। इस पतितपावनतीर्थ में जप-तप, स्नान-दान से महापातकोंका नाश, मनोकामना की पूर्ति तथा सद्गति मिलती है। धनुष्कोटिका दर्शन करने वाले व्यक्ति के हृदय की अज्ञानमयीग्रंथि कट जाती है, उसके सब संशय दूर हो जाते हैं और संचित पापों का नाश हो जाता है। यहां पिण्डदान करने से पितरोंको कल्पपर्यन्ततृप्ति रहती है। धनुष्कोटितीर्थ में पृथ्वी के दस कोटि सहस्र(एक खरब) तीर्थो का वास है।

वस्तुत:रामसेतुमहातीर्थहै। विद्वानों ने इस सेतु को लगभग 17,50,000साल पुराना बताया है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में निर्दिष्ट काल-गणना के अनुसार यह समय त्रेतायुगका है, जिसमें भगवान श्रीराम का अवतार हुआ था। सही मायनों में यह सेतु रामकथा की वास्तविकता का ऐतिहासिक प्रमाण है। समुद्र में जलमग्न हो जाने पर भी रामसेतुका आध्यात्मिक प्रभाव नष्ट नहीं हुआ है।

स्कंदपुराण,कूर्मपुराणआदि पुराणों में भगवान शिव का वचन है कि जब तक रामसेतुकी आधारभूमितथा रामसेतुका अस्तित्व किसी भी रूप में विद्यमान रहेगा, तब तक भगवान शंकर सेतुतीर्थमें सदैव उपस्थित रहेंगे। अत:श्रीरामसेतुआज भी दिव्य ऊर्जा का स्रोत है। पुरातात्विक महत्व की ऐसी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षण प्रदान करते हुए हमें उसकी हर कीमत पर रक्षा करनी चाहिए। यह सेतु श्रीराम की लंका- विजय का साक्षी होने के साथ एक महातीर्थभी है।

जा पर विपदा परत है, सो आवत यहिदेश।




विंध्यपर्वत के उत्तर में है चित्रकूट धाम। यह केवल एक धार्मिक स्थान है, बल्कि अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के कारण भी काफी चर्चित है।

आध्यात्मिक शांति :चित्रकूट पर्वत मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश, दोनों राज्यों की सीमाओं को घेरता है। वनवास के दौरान भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ सबसे अधिक समय तक यहीं निवास किया था। यात्रियों को चित्रकूट गिरि, स्फटिक शिला, भरत कूप, चित्रकूट-वन, गुप्त गोदावरी,मंदाकिनी [पयस्विनी] की यात्रा करने से आध्यात्मिक शांति मिलती है।

चित्रकूट गिरि को कामद गिरि भी कहते हैं, क्योंकि इस पर्वत को राम की कृपा प्राप्त हुई थी। राम-भक्तों का विश्वास है कि कामद गिरि के दर्शन मात्र से दुख समाप्त हो जाते हैं। इसका एक और नाम कामतानाथभी है। अनुसूइयाकी तपोभूमि :चित्रकूट में पयस्विनी नदी है, जिसे मंदाकिनी भी कहते हैं। इसी के किनारे स्फटिक शिला पर बैठ कर राम ने मानव रूप में कई लीलाएं कीं। इसी स्थान पर राम ने फूलों से बने आभूषण से सीता को सजाया था। पयस्विनी के बायीं ओर प्रमोद वन है, जिससे आगे जानकी कुंड है। यहां स्थित अनुसूइयाआश्रम महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूइयाकी तपोभूमि कहलाती है। कहते हैं कि अत्रि की प्यास बुझाने के लिए अपने तप से अनुसूइयाने पयस्विनी को प्रगट कर लिया। गुप्त गोदावरीकी विशाल गुफामें सीताकुंड बना हुआ है। कामदगिरिके पीछे लक्ष्मण पहाडी स्थित है, जहां एक लक्ष्मण मंदिर है। इसके अलावा, चित्रकूट में बांके सिद्ध, पम्पासरोवर, सरस्वती नदी (झरना), यमतीर्थ,सिद्धाश्रम,हनुमान धारा आदि भी है। राम-भक्त कहते हैं कि राम जिस स्थान पर रहते हैं, वह स्थान ही उनके लिए अयोध्या के समान हो जाता है।

पयस्विनी चित्रकूट की अमृतधारा के समान है। मंदाकिनी नाम से जानी जाने वाली पयस्विनी को कामधेनु और कल्पतरु के समान माना जाता है। शिवपुराणके रुद्रसंहितामें भी पयस्विनी का उल्लेख है। तुलसी-रहीम की मित्रता :वाल्मीकि मुनि ने चित्रकूट की खूब प्रशंसा की है। तुलसीदास ने माना है कि यदि कोई व्यक्ति छह मास तक पयस्विनी के किनारे रहता है और केवल फल खाकर राम नाम जपता रहता है, तो उसे सभी तरह की सिद्धियां मिल जाती हैं।

रामायण और गीतावलीमें भी चित्रकूट की महिमा बताई गई है। दरअसल, यही वह स्थान है, जहां भरत राम से मिलने आते हैं और पूरी दुनिया के सामने अपना आदर्श प्रस्तुत करते हैं। यही वजह है कि इस स्थान पर तुलसी ने भरत के चरित्र को राम से अधिक श्रेष्ठ बताया है। देश में सबसे पहला राष्ट्रीय रामायण मेला चित्रकूट में ही शुरू किया गया। तुलसी-रहीम की मित्रता की कहानी आज भी यहां बडे प्रेम से न केवल कही, बल्कि सुनी भी जाती है।

रहीम ने कहा-जा पर विपदा परत है, सो आवत यहिदेश।

Wednesday 29 July, 2009

रामबोला तुलसीदास


प्रभु श्रीराम की कथा को जन-सुलभ बनाने के लिए तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की। इसके माध्यम से उन्होंने संपूर्ण मानव जाति को कई संदेश दिए। गोस्वामी के अन्य प्रामाणिक ग्रंथों में रामलला नहछू,रामाज्ञाप्रश्न, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, गीतावली,कृष्णगीतावली,विनय पत्रिका, बरवै रामायण, दोहावली,कवितावली,हनुमान बाहुक,वैराग्य संदीपनीआदि प्रमुख हैं। हनुमान चालीसा के रचयिता भी तुलसीदास ही हैं। उनका जन्म वर्ष १४९७ चित्रकूट के राजापुर में हुआ था।

इनके पिता आत्माराम और माता थीं हुलसी थीं। किंवदंती है कि नौ महीने के बजाय तुलसी मां के गर्भ में बारह माह रहे। जन्म लेते ही उनके मुख से राम शब्द निकला । कहते हैं कि उनकी माता ने किसी अनिष्ट की आशंका से नवजात तुलसी को अपनी दासी चुनियांके साथ उसकी ससुराल भेज दिया। अगले ही दिन उनकी मां की मृत्यु हो गई। तुलसी जब मात्र 6वर्ष के थे, तो चुनियांका भी देहांत हो गया। मान्यता है कि भगवान शंकर की प्रेरणा से स्वामी नरहरिदास ने बालक तुलसी को ढूंढ निकाला और उनका नाम रामबोलारख दिया। तुलसीदास का विवाह रत्नावली के साथ हुआ

एक घटनाक्रम में रत्नावली ने अपनी पति को धिक्कारा, जिससे वे प्रभु श्रीराम की भक्ति की ओर उन्मुख हो गए। गुण-अवगुण की व्याख्या गोस्वामी तुलसीदास ने राम की कथा जन-सुलभ बनाने के लिए रामचरितमानस की रचना की। इसमें उन्होंने सामान्य आदमी के गुण-अवगुण की व्याख्या बडे ही सुंदर शब्दों में की है।बालकांड में एक दोहा है-

साधु चरित सुभचरित कपासू।

निसरबिसदगुनमयफल जासू।

जो सहिदुख परछिद्रदुरावा।

बंदनीयजेहिंजग जस पावा।।

अर्थात सज्जन पुरुषों का चरित्र कपास के समान नीरस, लेकिन गुणों से भरपूर होता है। जिस प्रकार कपास से बना धागा सुई के छेद को स्वयं से ढककर वस्त्र तैयार करता है, उसी प्रकार संत दूसरों के छिद्रों (दोषों) को ढकने के लिए स्वयं अपार दुख सहते हैं। इसलिए ऐसे पुरुष संसार में वंदनीय और यशस्वी होते हैं। उन्होंने सत्संगति की महत्ता पर भी बल दिया है। वे मानते हैं कि राम की कृपा के बिना व्यक्ति को सत्संगति का लाभ नहीं मिल सकता है-

बिनुसत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिन सुलभ न सोई। -मनोविज्ञान की परख गोस्वामी तुलसीदास की प्रतिभा छोटी उम्र से ही दिखने लगी थी। उनकी कवित्व क्षमता से कई समकालीन कवि ईष्र्या करने लगे थे। ऐसे लोगों के संदर्भ में तुलसी ने जो व्याख्या की है, वह आज के समय में भी सटीक बैठती है।

वे कहते हैं-जिन कबित केहिलाग न नीका।सरस होउअथवा अति फीका। जे पर भनितिसुनतहरषाही।तेबर पुरुष बहुत जग नाही।अपनी कविता, चाहे रसपूर्णहो या अत्यंत फीकी, किसे अच्छी नहीं लगती। लेकिन जो लोग दूसरों की रचना सुनकर प्रसन्न होते हों, ऐसे श्रेष्ठ पुरुष जगत में अधिक नहीं हैं।

अरण्यकांडमें शूर्पणखाके माध्यम से वे लिखते हैं कि शत्रु, रोग, अग्नि, पाप, स्वामी और सर्प को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए। इसी प्रकार सुंदरकांडमें एक स्थान पर तुलसी लिखते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु लाभ की आशा से आपके लिए हितकारी बात न करें, तो राज्य, शरीर और धर्म, इन तीनों का नाश हो जाता है। समर्थ की पहचान वे कहते हैं-शुभ अरुअशुभ सलिल सब बहई।

सुरसईकोउअपुनीतन कहई।समरथकहुंनहिंदोषुगोसाई। रबिपावक सुरसरिकी नाई।

गंगा में शुभ और अशुभ सभी प्रकार का जल बहता है, लेकिन गंगा को कोई अपवित्र नहीं कह पाता है। सूर्य, अग्नि और गंगा के समान, जो व्यक्ति साम‌र्थ्यवान होते हैं, उनके दोषों पर कोई उंगली नहीं उठा पाता है। प्रेम के भूखे राम तुलसी ने अपना सारा जीवन श्रीराम की भक्ति में बिता दिया। वे अयोध्याकांडमें लिखते हैं-रामहि केवल प्रेमुपिआरा।जानिलेउजो जान निहारा। अर्थात श्रीराम को मात्र प्रेम प्यारा है, जो जानना चाहता है, वह जान ले। भक्त की सच्ची पुकार पर भगवान उनके पास दौडे चले आते हैं। तुलसीदास पुराण और वेदों के माध्यम से लोगों से कहते हैं कि सुबुद्धिऔर कुबुद्धि का वास सभी लोगों के हृदय में होता है। जहां सुबुद्धिहै, वहीं सुख का वास है और जहां कुबुद्धि है, वहां विपत्ति आनी निश्चित है। इतने वर्षो बाद आज भी तुलसी के संदेश प्रासंगिक हैं।

जुगनू खान


Saturday 18 July, 2009

संत स्वामी प्रपन्नाचार्य जी


संत प्रपन्नाचार्य जी महाराज देश के एक जाने माने त्पोनिस्थ संत हैं
इनके द्वारा कही जाने वाली कथा को भक्त सुन कर श्री krashna की भक्ति से सराबोर हो जाते हैं मद्ध परदेश के सतना जिले मे पैदा हुए संत प्रपन्नाचार्य जी को रत्नों की भी बहुत अधिक जानकारी है देश और विदेश के लोग इनके द्वारा ही बताए गई रत्नों को धारण कर अपनी तमाम मुस्किलो का समाधान करते हैं चित्रकूट के रहस्यों की बारीकी से jankari भी रखते हैं enka kahna है की janha dharma है vahi जय है


इनके bare मे और अधिक jankari aur सलाह के लिए आप हमे ईमेल कर सकते हैं mailto:JUGNU.NEWS24@GMAIL.COM ya phone karen 91+9450225037
jugnu khan chitrakoot

महाशिवलिंग निर्माण फोटो चित्रकूट







जुगनू खान चित्रकूट

चित्रकूट। भगवान के मिलने के ज्वलंत उदाहरण चित्रकूट की पवित्र धरती पर आज भी मौजूद हैं। जब प्राणी भगवान को चित्त मे धारण कर लेता है तो उसे चित्रों के इस कूट में भगवान सहजता से मिल जाते हैं। संत तुलसी के साथ ही इस धरती के तमाम ऐसे महात्मा हैं जिन्होंने परमात्मा के दर्शन किये हैं।
लोभ लाभ का परित्याग कर चित्त में भगवान को बैठा लेने पर प्रभु के दर्शन सहजता से होते हैं। भरत जी भी यहां पर गुरु वशिष्ठ इसीलिये अपने साथ लेकर आये थे क्योंकि हर चीज उनके बस में थी। अनोखे मिलन की स्थली के रूप में चित्रकूट को निरुपित करने के साथ ही कहा जाता है कि 'हरि व्यापक सवर्ग समाना, प्रेम से प्रकट होहि भगवाना'।
परमात्मा को ढ़ूंढने की कला संतों के आर्शीवाद से ही मिल सकती है। वाणी को वीणा बना लेने से जीवन में पवित्रता आ जाती है। संसार में उपलब्धियों का क्रम अपने आप प्रारंभ हो जाता है। संत कृपा दुर्लभ नही है पर संत कृपा के लिये चिंतन का होना अति आवश्यक है। संतों की कृपा कब जीवन में हो जायेगी यह पता भी नहीं चलेगा और जीवन अंधकार से प्रकाश की ओर चल पड़ेगा। मार्गदर्शक के लक्षण ज्यादा चालाक व व्यवहार कुशल हो तो सहगामी बौरा नहीं सकता। अनुगामी लंगड़ा न हो अर्थात अनुगामी लंगड़ा होगा तो बोझा कौन ढोएगा। कथनी और करनी में एकता होने से मानव समाज दिग्भ्रमित होने से बच सकता है

जुगनू खान 09450225037

Friday 17 July, 2009

हरहर-बमबम से गूंजी धर्मनगरी


चित्रकूट। रिमझिम बारिश के बीच सावन के पहले सोमवार को भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। मत्स्यगयेन्द्र नाथ मंदिर के साथ ही जनपद के अन्य शिवालयों में भक्त दिनभर भोले बाबा का पूजन करते रहे।
तीर्थ नगरी में सोमवार को भगवान शंकर के भक्तों का सैलाब उमड़ सा दिखाई दे रहा था। सावन के पहले सोमवार पर चित्रकूट के महाराजाधिराजस्वामी मत्स्यगयेन्द्र नाथ के दर्शनों के लिये आये सैलाब के सामने मंदिर का प्रांगण छोटा पड़ गया। हर कहीं हरहर बमबम और ऊं नम: शिवाय के उद्घोषों के साथ भक्त हाथों में मंदाकिनी का जल, दूध, बेल, धतेरा, बेल पत्र, चंदन, भांग, धतूरा, के साथ पुष्पों को लिए कतारों में खड़े थे। शिव तांडव स्त्रोत व शिव महिमा के कैसेट समूचे क्षेत्र में गुंजायमान हो रहे थे। बाहर से आये कांवरियों और उनकी रक्तिम आभा युक्त पोशाकों से पूरे तीर्थक्षेत्र में रौनक बढ़ गयी। तमाम श्रद्धालु श्री राम जी के राज्याभिषेक के लिए लाये जाने वाले समस्त नदियों व तीर्थो के जल को अपने में समाहित रखने वाले भरतकूप के कुएं का भी जल लाये थे। तमाम भक्त राजापुर व मऊ से पवित्र यमुना का जल लेकर अभिषेक करने आये थे। स्थानीय दुकानदार भी यहां पर शिव महिमा से सम्बंधित कैसेटों के गीतों को बजाते दिखाई दिये।

जुगनू खान चित्रकूट 09450225037

कलियुग केवल नाम अधारा


चित्रकूट। नर कर्म प्रधान है, नारी धर्म प्रधान है और नारायण मर्म प्रधान हैं। यह भाव ही अनुभूति का विषय है। यह बातें आचार्य पं. देव प्रभाकर शास्त्री ने रैन बसेरा परिसर में संकल्प पूर्ति महा महोत्सव में रविवार को देश विदेश से आये अपने तमाम शिष्यों को संबोधित करते करते हुये कहीं।
उन्होंने कहा कि विषयों से निजात पान का उपाय संतों की शरण में मिलता है। विषयों से वीतरागी संत अपने शिष्य को खूबसूरती से बाहर निकालकर उसे परमात्मा का साक्षात्कार करा देते हैं। फिर चित्रकूट जैसी वसुन्धरा जहां पर आदि काल से ही संतों का डेरा है वास्तव में महान हैं। यहां तो प्रभु के चरण सर्वत्र पड़े और उनकी चरण धूलि आज भी वातावरण में धूल बनकर टहल रही है। यहां आने वाला हर एक प्राणी कृतार्थ हो गया। आचार्य श्री ने संतों को साक्षात ईश्वर की उपाधि देते हुये कहा कि इनके दर्शनों से ही जीवन तर जाता है। बताया कि शायद वे विश्व के इकलौते ऐसे शिष्य होंगे जिसकी गुरु दीक्षा कारागार में हुई थी। उन दिनों में काशी में मंदिरों में हरिजनों के प्रवेश करने पर आंदोलन हुआ था जिसमें वे चार दिनों के लिये जेल गये थे। उन्होंने सपाट शब्दों में कहा कि परमात्मा अनुभूति का विषय है और अपने आपको जाने बिना परमात्मा का मर्म नही जाना जा सकता। व्यक्ति में बिना पात्रता आये भगवान नही मिल सकते। वैसे भगवान खुद को साबित करने के लिये भक्तों की तलाश करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि 29 वर्षो की अविरल यात्रा को आज गुरु दक्षिणा के ऋण चुकाने के रुप में एक पड़ाव मिला। श्री मद् भगवत गीता को साक्षात कामधेनु बताते हुये कहा कि कलयुग में केवल भगवान के नाम जप से ही वैतरणी पार हो सकती है। उन्होंने दृष्टांतों के माध्यम से समझाया कि राम न कह पाने पर कोई बात नही केवल रां से ही काम चलाया जा सकता है। कथा के अंत में उन्होंने 5 करोड़ 29 लाख 71 हजार महारुद्रों के निर्माण हो जाने की घोषणा की। इस दौरान कथा सुनने आये मप्र के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजय वर्गीय ने 'छोटो से मेरो मदन गोपाल' भजन सुनाकर सभी को थिरकने पर मजबूर कर दिया। कथा के समापन पर बाहर से आये भक्तों व इस तीर्थ क्षेत्र के संतों ने आचार्य श्री को महारुद्रों को पूरा करने के उनके संकल्प पर बधाई देते हुये साधुवाद भी दिया। इस दौरान कथा सुनने के लिये कर्नाटक वाली माता जी, आचार्य नवलेश जी दीक्षित के साथ ही वेद विद्यालय के विद्वान आचार्यो के साथ ही डीआरआई के प्रधान सचिव डा. भरत पाठक समेत, मायानगरी के आशुतोष राणा, राजपाल यादव, ठाकुर पद्म सिंह, केवल कृष्ण, सुनील सोहाने, संतोष उपाध्याय, संजय अग्रवाल मौजूद रहे।

वैष्णव भक्तों में चढ़ा शिव भक्ति का रंग


चित्रकूट। सावन का महीना और चित्रकूट जैसे तीर्थ में बाबा भोले का स्वरूपों के निर्माण के साथ ही पूजन। भले ही इस नगरी की ख्याति वैष्णव हो पर इन दिनों तो पूरी तरह से शिव भक्ति लोगों के सिर चढ़कर उनके शाक्त होने का सबूत दे रही है। ऊं नम: शिवाय के उद्घोषों के साथ ही संगीत की मधुर स्वर लहरियों के बीच महारुद्रों के निर्माण का काम करना अपने आपमें विशिष्ठ अनुभव है। तभी तो वीआईपी हो या फिर साधारण लोग यहां पर मूर्तियों को बनाने और उनके पूजन के संवरण लोभ से नहीं बच पाते।
सुबह से लोग रैन बसेरा परिसर के विशाल मैदान में पहुंच गये और काली मिट्टी से लाखों महारुद्रों के निर्माण में जुटे रहे। उधर, श्री राम अर्चा व श्री राम रक्षा स्त्रोत की आहुतियां भी लोग यज्ञ शाला में डालते दिखाई दिये। सुबह पौ फटते ही मुख्यालय के साथ ही तीर्थ क्षेत्र के रहने वाले संतों व महंतों के रुख भी महारुद्र पंडाल की तरफ दिखाई दिया। लोगों ने बड़ी ही श्रद्धा के साथ काली मिट्टी के शिव लिंग बनाने का काम जारी रखा। देश के विभिन्न हिस्सों से आये सेवादार भी महारुद्रों के निर्माण में लगने वाली सामग्री का वितरण जारी रखा, उधर निर्माण के साथ ही भजनों के दौर को आगे बढ़ाने का काम राधे-राधे मंडल व संगीतकार सुजीत चौबे ने किया। बीच-बीच में जयकारों को बोल माहौल में उल्लास व उत्साह भरने का काम कर रहे थे। आशुतोष राणा, राज पाल यादव ने विसर्जन में भी भाग लिया।

सात लाख भाई बहनों का परिवार देखकर आशुतोष राणा के निकले आंसू

Jul 16, 10:29 pm
चित्रकूट। सात भाइयों और पांच बहनों के परिवार वाले को जब सात लाख भाई बहन मिल जायें तो हाल क्या होगा ? वह अपने आपको रोक नही पाये और गला रुंध गया। संकल्प पूर्ति महा महोत्सव की अंतिम वेला पर सभी गण मान्यों को सम्मानित करने के और सबका आभार प्रकट करने के बाद जब नम्बर सभी गुरु भाइयों व बहिनों से बात का अवसर आया तो फिल्म स्टार आशुतोष राणा का गला मंच पर ही भर आया। तीन से चार बार बोलने का प्रयास किया पर वे सफल हो न सके। आंसू भी छिपाने का प्रयास किया पर वे भी सभी को दिख ही गये। उन्होंने कहा कि मुझे अपने परिवार में सात भाई और पांच बहनें मिली पर दद्दा जी हमें सात लाख भाई और बहन दे दिये। इसकी खुशी शब्दों में बयान नही की जा सकती।
उन्होंने कहा कि जैसे माला 108 मनकों की होती है वैसे ही यज्ञों की श्रंखला भी कम से कम 108 तक पहुंचनी चाहिये। 45 यज्ञों में इन्हें विश्राम न दें। उन्होंने कहा कि आज की तारीख में पैंतालीस पार्थिव महारुद्र निर्माण की प्रक्रिया में अब तक 1 अरब 19 करोड़, 23 लाख, 93 हजार और 674 पार्थिव शिव लिंगों का निर्माण हो चुका है। बताया कि अभी तक के हुये केवल एक यज्ञ में उन्होंने आहुति नही डाली बाकी सभी चौवालीस यज्ञों में आहुति डालने का काम उन्होंने किया।
इस दौरान फिल्म अभिनेता राज पाल यादव ने भी विचार व्यक्त करते हुये कहा कि उनकी सफलता की कहानी दद्दा जी के शिष्य बनने के बाद से शुरु हुई। वर्ष 1999 में उन्होंने दद्दा जी से दीक्षा ली और उसी समय जंगल मिली और उस जंगल फिल्म ने उनके जीवन में मंगल कर दिया। इस दौरान दद्दा जी के पुत्र प्रो. अनिल त्रिपाठी, विधायक संजय पाठक आदि ने भी संबोधित किया। जिलाधिकारी ह्देश कुमार ने भी संबोधित किया।
इसके पूर्व रोजाना की तरह की शिव लिंगों के निर्माण का काम जारी रहा। लोगों ने बड़ी संख्या में जाकर पार्थिव शिव लिंगों का निर्माण किया। बाद में उनका विसर्जन किया गया।

लक्ष्य से बहुत आगे निकल गये शिव भक्त

लक्ष्य से बहुत आगे निकल गये शिव भक्त
Jul 16, 10:30 pm
चित्रकूट। दस दिनों तक लोगों को शिव भक्ति के रंग में रंगने वाला संकल्प पूर्ति महा महोत्सव गुरुवार को पूरा हो गया। यहां के लोग भी भोले बाबा की भक्ति में इस कदर डूबे कि उन्होंने सवा पांच करोड़ शिवलिंग बनाने के लक्ष्य को बहुत पीछे छोड़ दिया। इस महोत्सव में 9 करोड़, 54 लाख, 58 हजार, 633 पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण हुआ।
महोत्सव के अंतिम दिन आचार्य देव प्रभाकर शास्त्री ने अपने आधे घंटे के उद्बोधन में कहा कि गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य कर उन्होंने 9 के अंक के साथ ही चित्रकूट की इस पावन धरती पर अपनी महारुद्र निर्माण की यात्रा को विराम देने का निश्चय किया। हालांकि माता, पिता और गुरु के बाद पुत्र ऋण के कारण वे अभी ऐसा पूरी तौर पर नही कर पा रहे हैं। शिष्यों की इच्छा पर पार्थिव शिव लिंगों के निर्माण की प्रक्रिया लगातार देश के विभिन्न भागों में चलती रहेगी। कहा कि कर्म, धर्म और अर्पण का भाव अगर हो तो प्रभु को पूजने के लिए मंदिर जाना पड़ेगा पर समर्पण का भाव होने पर प्रभु खुद घर में बने मंदिर में विराजमान हो जायेंगे। नरसिंग मेहता, संत तुकाराम, विट्ठल नाथ, नामदेव जैसे तमाम उदाहरण देकर बताया कि समर्पण ही भक्ति की पराकाष्ठा है। अभिमान की शून्यता व्यक्ति को परमात्मा के नजदीक ले जाने का प्रमुख माध्यम है। मन की शून्यता और शुद्धता पाकर प्रभु स्वयं ही भक्त के पास चले आते हैं। हनुमान और प्रहलाद जैसे तमाम उदाहरण हैं जहां भगवान से भक्त काफी बढ़ा हो सकता है। उन्होंने कहा कि मन के अहंकार को तन तक लाने का प्रयास करना चाहिये जिससे मकान के किनारे आने पर बेकार की वस्तु को धक्का मारकर बाहर किया जा सके। इसके पूर्व उन्होंने पद्मश्री नाना जी देशमुख को शाल और श्री फल देकर सम्मानित किया। इस दौरान जिलाधिकारी हृदेश कुमार व सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट के ट्रस्टी राम भाई गोकानी को भी शाल श्री फल सौंपा गया।

Saturday 23 May, 2009

बुंदेलखंड में भी औद्योगिक क्रांति के पक्षधर थे राजीव गांधी

May 22, 02:07 am

चित्रकूट। विश्व भर में बढ़ रही प्रतिस्पर्धा में भारतवर्ष को अग्रणी बनाने के लिये पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी को देश का बहुत बड़ा वर्ग आज अपना आदर्श मानता है। धर्मनगरी के प्रबुद्ध, समाजसेवी व युवा उन्हे संचार क्रांति का जनक बताते है। उन्होंने बुंदेलखंड की परिस्थिति को भी बारीकी से समझकर बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री की स्थापना कराई थी। बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराने के लिये बरगढ़ के क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी घोषित कराया था। अब उनके पुत्र राहुल गांधी द्वारा भी उसकी नक्शेकदम पर चलते हुये युवाओं को रोजगार मुहैया कराने की पहल से क्षेत्रवासी फिर आशान्वित हो गये है।

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपालदास अग्रवाल कहते है कि पूर्व प्रधानमंत्री ने युवाओं को देश विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये कार्य किया। आधुनिक भारत के निर्माण में उनके कार्य सराहनीय रहे। आज देशहित की बात सोचने वाले कम नेता बचे है। समाजसेवी रमेशचंद्र पटेल ने कहा कि स्व. गांधी ने ही युवाओं की ताकत का एहसास कराया। 18 वर्ष की आयु वालों को मतदान का अधिकार देने का ही परिणाम है कि देश का युवा विदेशों तक में सफल हो रहा है।

अधिवक्ता रुद्र प्रसाद मिश्रा ने कहा कि बरगढ़ क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र घोषित कराने के पीछे पूर्व प्रधानमंत्री की सिर्फ यही अवधारणा थी कि बुंदेलखंड का बेरोजगार व्यक्ति कहीं भटके नहीं, सबको रोजगार यहीं मिलता तो पलायन व गरीबी खत्म हो जाती। समाजसेवी लवकुश गर्ग ने कहा कि देश में संचार क्रांति लाने का श्रेय भी सिर्फ राजीव गांधी को ही है। उनकी दूर दृष्टि सोच का परिणाम है कि हमारा देशवासी पल-पल देश-विदेश से जुड़ गया है। उद्योग जगत को इसका भरपूर लाभ मिला है।

बीएड छात्रा ऋचा सिंह व सुनीता राज कहती है कि पूर्व प्रधानमंत्री की सोच वाले नेताओं की सख्त जरूरत है। अनुभव के साथ युवा वर्ग का जनप्रतिनिधि को स्व। गांधी से प्रेरणा लेनी चाहिये।

जुगनू खान