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Wednesday 22 April, 2015

पौराणिक शिला के पूजन से प्रसन्न होते शनिदेव

शनिश्चरी अमावस्या में भगवान शनि की आराधना लोगों को उनके प्रकोप से बचाती है इसके लिए प्रभु श्रीराम की तपोभूमि की पौराणिक शनि देव शिला विशेष लाभकारी है। साढ़े साती या ढ़ाईया से परेशान लोगों को शनि शिला में पूजा अर्चना करने शनिदेव की कृपा मिलती है। कामदगिरि की तलहटी में स्थापित इस शनि शिला में लोगों की मान्यता है कि भरत जी जब प्रभु श्रीराम को मनाने चित्रकूट आए थे तब उन्होंने भी यहां पूजन किया था। आज जो भी शनि की ग्रह दशा के परेशान व्यक्ति इस शिला में पूजन करता है उसको शनि देव की कृपा मिलती है और उसके कष्टों का हरण होता है। आज से करीब एक दशक पहले यह शिला कामदगिरि परिक्रमा में पीलीकोठी के पास काफी घने जंगल में थी। तब वहीं लोग पूजा अर्चना को जाते थे। जंगल में होने के कारण कम लोग ही उसके महात्म को जानते थे। करीब पांच वर्ष पहले स्टेट बैंक के अधिकारियों को जब इस शिला में पूजा अर्चना से मनोकामना पूर्ण हुई तो उन्होंने यहां पर साफ-सफाई कराई थी। जब से यह शिला लोगों के विशेष आस्था की केंद्र हो गई है। वन विभाग के रेंजर नरेंद्र सिंह ने करीब डेढ़ साल पहले यहां पर जीर्णोद्धार का कार्य कराया। वह बताते हैं कि वन क्षेत्र में शिला होने की वजह से यहां पर मंदिर निर्माण नहीं हो सकता था जब उनके संज्ञान में आया कि पीलीकोठी के पास एक शनि शिला है जिसमें भगवान राम के भ्राता भरत जी ने पूजन किया था तो उन्होंने जीणोद्धार का कार्य कराया। आज प्रतिदिन हजारों लोग यहां पर पूजा अर्चना करते हैं। शनिवार को तो दीपक जलाने के लिए लोगों का तांता लगता है। पंडित चंदन दीक्षित कहते हैं कि उनके संज्ञान में इस शनि शिला का किसी ग्रंथ में उल्लेख नहीं है लेकिन लोगों का मामना है कि यहां पर जो भी कामना की जाती है वह पूर्ण होती है। खास कर शनिश्चरी अमावस्या में शनि शिला की पूजा विशेष लाभकारी होती है

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